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बागमती नदी - बागमती कथा : भाग एक

  • By
  • Dr Dinesh kumar Mishra
  • August-31-2018

बागमती नदी से आप सभी को परचित करवाया जाये उससे पहले आपको यह सूचित करना अनिवार्य है कि बागमती कथा की यह पूरी श्रंखला डॉ दिनेश कुमार मिश्र के अथक प्रयासों का नतीजा है।

परिचय

बागमती उत्तर बिहार के मिथिला अंचल की एक बहुत ही महत्वपूर्ण नदी है जिसका उद्गम नेपाल में काठमाण्डू से 16 किलोमीटर उत्तर-पूर्व दिशा में शिवपुरी पर्वतमाला में समुद्रतल से प्रायः 2800 मीटर ऊपर पड़ता है।

 

बागमती नदी से आप सभी को परचित करवाया जाये उससे पहले आपको यह सूचित करना अनिवार्य है कि बागमती कथा की

 

नेपाल में इसे सप्त-बागमती भी कहते हैं जो कि मणिमती, रुद्रमती, हनुमती, विष्णुमती, भद्रमती, मनोहरा की बागमती के साथ सम्मिलित धारा है (चित्र-1-2)। नीचे चल कर इस नदी में कुलेखानी, कोखाजोर, मरिन, चण्डी तथा झांझ आदि नदियाँ मिल जाती हैं। पहाड़ों से उतरती हुई यह नदी भारत की सीमा को छूने के पहले 195 किलोमीटर की यात्र तय कर लेती है। नेपाल के आठ जिलों नामशः काठमाण्डू, ललितपुर, भक्तपुर, कव्रे, मकवानपुर, सिंधुली, रौतहट और सरलाही होकर गुज़रने वाली बागमती नदी पहाड़ों से नुनथर के पास में उतरती है। यहाँ से यह लगभग 70 किलोमीटर सीधे दक्षिण दिशा में चल कर बिहार के सीतामढ़ी जिले में ढेंग के उत्तर शोरवतिया गाँव में प्रवेश करती है।

 

बागमती नदी से आप सभी को परचित करवाया जाये उससे पहले आपको यह सूचित करना अनिवार्य है कि बागमती कथा की

 

नेपाल में इन सभी नदियों के किनारे हिन्दुओं के बहुत से महत्वपूर्ण तीर्थस्थान हैं। विश्वास किया जाता है कि विष्णुमती और बागमती के संगम पर भगवान विष्णु का वास था और यह नदी उनके चरणों को छूते हुए बहती थी। बागमती और विष्णुमती के मध्य भाग को सिद्धभूमि कहते हैं। यहाँ पाप नहीं रहता है। हनुमती वह नदी है जिसके किनारे संजीवनी बूटी की खोज में जब हनुमान हिमालय आये थे और संजीवनी को पहचान न पाने के कारण पूरा का पूरा द्रोणगिरि पर्वत ही उठा कर उड़ गए थे तब इसी नदी के किनारे उन्होंने कुछ काल के लिए विश्राम किया था। इसी तरह मनोहरा और बागमती के बीच की भूमि धर्मवर्द्धिनी है और उसे धर्मभूमि कहते हैं। भगवान विष्णु द्वारा मणिपर्वत पर तपस्या करते समय उनके श्रम के कारण जो पसीना निकला उसी से तत्काल मणिमती नदी प्रवाहित हुई। मणिमती और बागमती के संगम को ‘मैं जाता हूँ’ कहने मात्र से ही मनुष्य के सारे पाप धुल जाते हैं। मान्यता है कि मणिमती और बागमती के संगम पर जो गोकर्णेश्वर तीर्थ है वहीं बैठ कर राक्षसराज रावण ने महादेव की आराधना की थी और वहीं पर की हुई तपस्या के फलस्वरूप उसे अभूतपूर्व शक्तियां प्राप्त हुईं। ऐसी ही किंवदन्तियों की कड़ी है नेपाल के गौर बाजार का बलरा गाँव जहाँ ग्रामवासियों का दावा है कि हनुमान जब द्रोणगिरी पर्वत को उठा कर ले जा रहे थे तब उन्हें प्यास लगी और वे बागमती के किनारे इस स्थान पर पानी पीने के लिए उतरे और इसे बलरा नाम दिया जो कि तीन नामों का मिश्रण है। बजंरगबली ने अपने नाम का ‘ब’, लक्ष्मण के नाम का ‘ल’ लिया क्योंकि लक्ष्मण को शक्ति न लगी होती तो वे यहाँ न आते और राम का ‘रा’ लेकर इस स्थान का नामकरण किया क्योंकि राम के आदेश के बिना भी उनका यहाँ आना संभव नहीं होता। इस तरह की अनेक कथाएं बागमती और उसकी बहुत सी सहायक धाराओं के बारे में प्रचलित हैं। 

बागमती नदी के विभिन्न आयामों से हम आपका परचिय करवायेंगे मगर हम उसके महात्म्य के बारे में थोड़ी चर्चा करेंगे मगर ‘बागमती कथा - भाग दो’ में।

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