स्कदंपुराण के हिमवत् खण्ड के नेपाल महात्म्य में बागमती के जल की पवित्रता और सम्भवतः उर्वरता के बारे में बड़ा ही रोचक प्रसंग देखने को मिलता है। नेपाल महात्म्य के अनुसार काशी नगरी में प्रियातिथि नाम का एक गरीब ब्राह्मण रहता था जिसे उसकी सर्वलक्षणा, महाभागा, पतिव्रता पत्नी से चार पुत्र पैदा हुए जिनके नाम मेधातिथि, गुणनिधि, भरत और मलय थे। पहले तीन पुत्र तो बहुत गुणवान, पितृभक्त तथा हमेशा स्वाध्याय में लगे रहने वाले थे मगर चौथा पुत्र मलय चोरी, ठगी, जुआ और चुगलखोरी जैसे दुर्व्यसनों में लिप्त रहा करता था। बहुत प्रयासों के बाद जब मलय में कोई सुधार नहीं हुआ तो पिता और परिवार ने उसे त्याग दिया। घर से निकल जाने के बाद मलय में वेश्यागमन का एक अन्य दुर्गुण भी जुड़ गया। अब उसे सारे दिन उचित-अनुचित जो भी आय होती वह उसे रात में वेश्याओं के हवाले कर देता था। एक बार जब वह पूरे दिन के श्रम के बाद थक कर एक वेश्या के यहाँ सो रहा था तब उसे रात में प्यास लगी और उसने हाथ बढ़ा कर पास में रखे पात्र से पानी पीने की कोशिश की। मगर पात्र में रखे पेय का स्वाद उसे अद्भुत लगा तो उसने वेश्या से पूछा कि पात्र में क्या था? उनींदी वेश्या ने मलय को बताया कि उस पात्र में अगर पानी नहीं था तो वह अद्भुत स्वाद वाली वस्तु निश्चित रूप से मदिरा थी। वेश्या का उत्तर सुन कर मलय बड़ा दुःखी हुआ। उसने अपने पिता को कभी यह कहते हुए सुना था कि मदिरा पीने वाले ब्राह्मण का कभी उद्धार नहीं होता। ब्राह्मण होकर मदिरा पी लेने की घटना से वह बड़ा आहत हुआ और तब उसका विवेक जगा। उसको लगा कि काशी में ब्राह्मण कुल में जन्म लेने के बाद भी वह स्वाध्याय, ज्ञानार्जन, जप, तप, दान, पुण्य और मणिकर्णिका स्नान से विरत होकर न केवल वेश्यागामी हुआ वरन् उसने ब्राह्मणों के लिए सर्वथा निषिद्ध मदिरा तक का सेवन कर लिया।
प्रायश्चित्त का विचार लेकर वह काशी के मणिकर्णिका घाट पर गया और उसने वहाँ आये ब्राह्मणों को अपना परिचय देकर अपने पाप का प्रायश्चित पूछा तो ब्राह्मणों ने डाँट-डपट कर उसे भगा दिया। दुःखी मलय तब नदी में स्नान कर के बाबा विश्वनाथ का दर्शन करने के निमित्त गया और वहाँ से वह मुक्ति मंडप गया। वहाँ एक बार फिर उसने अपना परिचय देते हुए उपस्थित ब्राह्मणों से अपने पाप के प्रायश्चित का उपाय पूछा जिससे उसकी शुद्धि हो जाए। सभी ब्राह्मणों ने उसकी बातें सुन कर अपनी आँखें फेर लीं मगर एक विनोदी ब्राह्मण ने मज़ाक करते हुए मलय को एक लाठी दी और कहा कि मदिरा पान करने वाले ब्राह्मण की शुद्धि तो नहीं होती पर तुम इस लाठी को लेकर तीर्थ यात्र पर चले जाओ। जब इस लाठी में अंकुर निकल आयेगा तबवह अंकुर देख कर तुम्हारी शुद्धि हो जायेगी।
लाठी से अंकुर निकलने वाली असंभव सी घटना पर भी विश्वास कर के मलय उस ब्राह्मण को बार-बार प्रणाम करके तीर्थ यात्र पर निकल गया और उसे घूमते-घूमते जब तीन वर्ष बीत गए तब वह
देव दुर्लभ श्लेष्मान्तक वन में पहुँचा और बागमती नदी के किनारे जाकर स्थित हुआ। उसने पहाड़ के पास अपनी लाठी रख दी और स्नान करने के लिए बागमती नदी में उतर गया। स्नान करके जब मलय बाहर आया तब उसने अपनी लाठी में अंकुर देखा। परम नीच मलय ने अंकुर देख कर अपने आप को पवित्र हुआ माना और उसी वन में तपस्या करने के विचार से रहने लगा तथा परम पद को प्राप्त किया।
यह कथायें तो मिथक ही हैं पर जिन लोगों ने भी इन्हें कहा या लिखा हो उन्होंने बागमती की पवित्रता, उसकी पवित्र करने की क्षमता और प्रवाह क्षेत्र की उर्वर धरती में सूखे बांस की लाठी में तत्काल अंकुरण करने की क्षमता का उद्घाटन करके नदी की महत्ता को उजागर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। शायद नदी के इन्हीं गुणों के कारण उसे नेपाल में वही स्थान प्राप्त है जो भारत में गंगा को मिलता है। उसकी उर्वरता के गुण को तो इतिहासकार और वैज्ञानिक सभी समान और निर्विवाद रूप से स्वीकार करते हैं।