बागमती से संगम
करने वाली और उसकी धारा से फूट कर निकलने वाली बहुत सी नदियाँ हैं। इनमें से कुछ
मुख्य नदियों और कुछ छाड्न धारों तथा उससे फूट कर निकलने वाली धारों के बारे में
हम प्रसंगवश यहाँ चर्चा करेंगे –
लालबकैया –
यह नदी नेपाल
में हेतौण्डा के पास चूरे पर्वतमाला से 1525 मीटर की ऊंचाई से निकलती है। 109 किलोमीटर लम्बी यह सदानीरा नदी नेपाल में लगभग 80 किलोमीटर की दूरी तय करके नेपाल के गौर बाजार कस्बे
के पश्चिम से भारत में प्रवेश करती है। भारत में इसका प्रवेश सीतामढ़ी जिले के
बैरगनियां कस्बे के पश्चिम गुआबाड़ी गाँव में होता है। भारत नेपाल सीमा से 29 किलोमीटर दक्षिण जाकर यह नदी खोरीपाकर गाँव में
बागमती से उसके दाहिने किनारे पर संगम कर लेती है। इस नदी को कुल जल ग्रहण क्षेत्र
896 वर्ग किलोमीटर है। गर्मी के मौसम में नदी का प्रवाह
बहुत कम हो जाया करता है। लालबकैया के पश्चिमी किनारे की जमीन ऊपर की ओर उठी हुई
है मगर पूर्वी किनारे की जमीन कुछ दबी हुई है। इस वजह से बरसात के मौसम में नदी का
पानी पूर्वी किनारे पर ही छलकने का प्रयास करता है। इस नदी में किनारों के कटाव की
भी गंभीर समस्या है। नदी के भारतीय भाग में इसके दोनों किनारों पर तटबन्ध बने हुए
हैं जिनका अब विस्तार नेपाल में भी कर दिया गया है। लालबकैया के पूर्वी तटबन्ध को
किसी भी प्रकार की क्षति पहुँचने पर बाढ़ का सारा पानी नेपाल के रौतहट जिले के
मुख्यालय गौर बाजार और भारत के सीतामढ़ी जिले
के वैरगनियाँ शहर और उसके प्रखण्ड के गाँवों में घुस कर तबाही मचाता है।
लखनदेई –
कहा जाता है कि
इस नदी का मौलिक नाम लक्ष्मणावती है परन्तु हवलदार त्रिपाठी ‘सहृदय' के
अनुसार इस नदी का नाम लक्ष्मणा देवी ज्यादा जंचता है। उनका यह भी मानना था कि इस
नदी का नाम मैथिल कोकिल विद्यापति की काव्य नायिका लखिमादेई के नाम पर लखनदेई पड़ा
है। यह नदी नेपाल में हिमालय के निचले हिस्से में मरिन खोला से निकलती है। 282 किलोमीटर लम्बी इस नदी का ऊपरी 112 किलोमीटर नेपाल में पड़ता है। कुल मिला कर 1061 वर्ग किलोमीटर जल ग्रहण क्षेत्र वाली इस नदी की बाकी
170 किलोमीटर लम्बाई भारत (बिहार) में पड़ती है और
अनुमान किया जाता है कि इस नदी का अधिकतम प्रवाह 300 क्यूसेक के आस-पास होता है। यह नदी आजकल बागमती में
बायें किनारे पर मुजफ्फरपुर जिले के कटरा प्रखंड के बकुची-अख्तियारपुर गाँव में
मिल जाती है। इस तरह बकची-अख्तियारपुर में आजकल लखनदेई का अस्तित्व समाप्त हो जाता
है और यहाँ से आगे इस धारा को नये लोग बागमती ही कहने लगे हैं। बड़े बुजुर्गों के
बीच में दरभंगा जिले के कनौजर घाट तक बागमती की धारा लखनदेई के नाम से ही प्रसिद्ध
है। 1954
में बिहार सरकार ने दरभंगा जिले में नदी के
निचले हिस्से में लखनदेई की धारा की उड़ाही का काम करवाया था जिसमें उसे कोई खास
सफलता नहीं मिली वरन् उसने दूसरी समस्याओं को ही जन्म दिया। इस नदी में पानी
का प्रवाह तो
बहुत ज्यादा नहीं रहता है मगर जो भी पानी बरसात में इस नदी में आता है वह दोनों
किनारों को तोड़ कर बहता हुआ काफी तबाही पैदा करता है। नदी के किनारों पर
कहीं-कहीं आस-पास के ग्रामीणों या पुराने समय के जमीन्दारों ने तटबन्ध बना रखे थे
जिनका सरकार के अनुसार कोई डिजाइन या क्रम नहीं था। कहीं यह तटबन्ध नदी के बाईं
तरफ हैं तो कहीं दाहिनी तरफ या फिर दोनों तरफ। एक अच्छी खासी लम्बाई में तटबन्ध
कहीं भी नहीं हैं। बताया जाता है कि इन तटबन्धों में से कुछ का निर्माण दरभंगा राज
की ओर से भी किया गया था क्योंकि नदी के बायें किनारे से छलकता हुआ बरसाती पानी
दरभंगा शहर महा दरभंगा के महल तक चोट करता था। 2006 में
बिहार सरकार ने एक कानून बना कर जमीन्दारों और रियासतों द्वारा बनाए गये तटबंधों
के रख- रखाव का काम, जोकि तबतक राजस्व विभाग देखा करता था, उसे राज्य के जल संसाधन
विभाग के सुपुर्द कर दिया गया था.
बहरहाल, सांस्कृतिक दृष्टि से बागमती की तरह लखनदेई भी एक
बहुत महत्वपूर्ण नदी है। यह नदी बिहार के सीतामढ़ी जिले से होकर बहती है और
सीतामढ़ी के जिला मुख्यालय के बीच से इस नदी का प्रवाह होता है। ऐसी मान्यता है कि
जगजननी सीता का जन्म यहीं हुआ था। कहा जाता है कि सीरध्वज जनक के राज्य काल में इस
क्षेत्र में एक बार बारह वर्षों की अनावृष्टि के कारण भयंकर अकाल पड़ा। ऋषि
मुनियों,
पुरोहितों और विद्वानों का सुझाव था कि अगर राजा
जनक खेतों में स्वयं हल चलायें तो वर्षा होगी। राजा के लिए जो हल बनवाया गया उसमें
सोने का फाल लगाया गया था और निर्धारित समय पर राजा हल चलाने के लिए खेत में उतरे।
हल चलाने के क्रम में यह फाल जमीन में गड़े एक मटके से टकराया। मटके में राजा को
एक कन्या दिखाई पड़ी। हल के फाल (सीता) से टकरा कर उत्पन्न हुई कन्या का नाम राजा
ने सीता ही रख दिया। जनक (विदेह) की पुत्री होने के कारण उस कन्या को जानकी और
वैदही भी कहा जाने लगा। विश्वास किया जाता है कि आज का सीतामढ़ी शहर ही सीता की
जन्मस्थली है। सीतामढ़ी शहर में एक मन्दिर है जिसे जानकी मन्दिर कहते हैं। इस
मन्दिर का इतिहास उपलब्ध नहीं है मगर जानकी के जन्म दिन चैत्र मास के शुक्ल पक्ष
की नवमी (जानकी नवमी) पर यहाँ बहुत बड़ा मेला लगता है। कुछ लोगों का मानना है कि
सीता का जन्म शहर से लगे हुआ पुनौरा गाँव में हुआ था जहाँ एक आधुनिक मंदिर का निर्माण
किया गया है।
अधवारा
समूह की नदियाँ –
पश्चिम
में बागमती तथा पूरब में कमला के बीच छोटी-छोटी नदियों का एक समूह सक्रिय है जो कि
उत्तर में नेपाल से भारत (बिहार) में प्रवेश करता है और मुख्यतः तीन धाराओं में
बंटा हुआ दिखाई पड़ता है। इन नदियों को आम तौर पर अधवारा समूह की नदियों के नाम से
पुकारा जाता है। भारतीय भाग में इन नदियों के विस्तार क्षेत्र में सीतामढ़ी जिले
का उत्तर-पूर्वी भाग, मधुबनी
जिले
का
पश्चिमी भाग और दरभंगा जिले का उत्तर-पश्चिम वाली क्षेत्र आता है। इसमें सीतामढ़ी
जिले के पुपरी, सोनबरसा, परिहार, सुरसंड, बथनाहा और बाजपट्टी, मधुबनी जिले के हरलाखी, मधवापुर, बासोपट्टी, बेनीपट्टी, बिसफी तथा रहिका प्रखंड का कुछ भाग और
दरभंगा जिले के केवटी, जाले, सदर, सिंहवारा, बहादुरपुर, हनुमान नगर और हायाघाट प्रखण्ड आते हैं।
आगे चल कर सभी नदियाँ एक दूसरे में समाती हुई दरभंगा-बागमती के नाम से हायाघाट के
पास बागमती में मिल जाती हैं।
अधवारा
समूह की पहली मुख्य धारा में जमुरा, झीम, अधवारा, शिकाओ, बुढनद, मोहिनी और खिरोई नदियों का नाम आता है।
इस समूह की नदियों में सबसे पहला नाम झीम नदी का आता है जो नेपाल की सीमा के अन्दर
कलिन्जोर खोला और कुलिजर खोला के सम्मिलित प्रवाह से निर्मित होती है। झीम का
उद्गम समुद्र तल से प्रायः 610 मीटर ऊपर शिवालिक पर्वत माला में होता है। सीतामढ़ी जिले में
भारतीय सीमा से लगभग 16 किलोमीटर
दक्षिण में झीम के बायें किनारे पर सिंघबाहिनी, अधवारा, गोगा और बांकी नदियों का सम्मिलित
प्रवाह अधवारा के माध्यम से इसमें आ मिलता है और तब इस सम्मिलित धारा का नाम
अधवारा हो जाता है। सोनबरसा के पास अधवारा से भटवलिया के निकट दाहिने किनारे पर
जमुरा नदी संगम करती है। जमुरा नदी खुद लखनदेई के पूरब एक चौर से निकलती है। लखनदेई
के पूरब एक दूसरे चौर से निकली शिकाओ नदी बाजपट्टी के उत्तर में अधवारा नदी से
दाहिने किनारे पर आ मिलती है। इसी तरह पुपरी के उत्तर-पश्चिम से भदई चौर नाम की
श्रृंखला से निकली हुई एक नदी बुढ़नद, ऐग्रोपट्टी होते हुए रानीपुर गाँव के
पास अधवारा (अब इसका नाम खिरोई हो जाता है) से आकर मिल जाती है। यहाँ से खिरोई नदी
पहले पुपरी-बेनीपट्टी मार्ग को पार करती है और फिर घोघराहा- कमतौल मार्ग तथा कमतौल
रेलवे स्टेशन से लगभग 1.6 किलोमीटर उत्तर में दरभंगा-सीतामढ़ी
रेलवे लाइन को पार करती है। इसके दाहिने किनारे पर नीचे चल कर केतुका गाँव के पास मोहिनी नदी मिलती है। मोहिनी नदी में कुछ पानी लखनदेई नदी से छलक कर भी आ जाता है और कुछ पानी इसके स्थानीय
जलग्रहण क्षेत्र से भी रहता है। केतुका से दक्षिण दिशा में जाती हुई खिरोई नदी
मुजफ्फरपुर-दरभंगा मार्ग को शोभन गाँव के पास पार करती है और अन्ततः एकमीघाट के
पास दरभंगा-बागमती में मिल जाती है।
अधवारा
समूह की इन नदियों में खिरोई जिसका आदि नाम क्षीरोदकी था, बड़ी श्रद्धा से लिया जाता है। कमतौल के दक्षिण इस नदी के पश्चिम किनारे पर ब्रह्मपुर तथा पूरब में अहियारी नाम के गाँव पड़ते
हैं। कहते हैं कि ब्रह्मपुर गाँव में ही गौतम ऋषि का आश्रम हुआ करता था। विश्वामित्र के साथ सिद्धाश्रम से मिथिला जाने के क्रम में राम और लक्ष्मण गौतम आश्रम से गुजरे
थे। वीरान पड़े इस आश्रम के बारे में राम ने विश्वामित्र से जिज्ञासा की थी जिसके
उत्तर में विश्वामित्र ने बताया कि गौतम की पत्नी अहल्या के साथ देवराज इन्द्र ने
गौतम का रूप धारण करके छल से सम्भोग किया था। इस संबंध के प्रति कहीं न कहीं
अहल्या की भी स्वीकृति थी क्योंकि रूप बदलने के बाद भी अहल्या ने देवराज इन्द्र को
पहचान लिया था मगर इन्द्र का सानिध्य पाने के लिए वह कमजोर पड़ गयी। इसी
बीच जंगल में गए गौतम ऋषि वापस लौट आये। उन्होंने इन्द्र को अण्डकोष विहीन होने का
शाप दिया तथा अपनी पत्नी को भी शाप दिया,
दुराचारिणी!
तू भी यहाँ कई हजार वर्षों तक केवल हवा पीकर या उपवास करके कष्ट उठाती हुई राख में
पड़ी रहेगी। समस्त प्राणियों से अदृश्य रह कर इस आश्रम में निवास करेगी। जब
दुर्धर्ष दशरथ कुमार राम इस घोर वन में पदार्पण करेंगे, उस समय तू पवित्र होगी। उनका आतिथ्य
सत्कार करने से तेरे लोभ-मोह आदि दोष दूर हो जायेंगे और तू प्रसन्नता पूर्वक मेरे
पास पहुँच कर अपना पूर्व शरीर धारण कर लेगी।'' ऐसा कह कर गौतम ऋषि अपना आश्रम छोड़
तपस्या करने के निमित्त हिमालय की ओर कूच कर गए। विश्वामित्र ने राम को देवरूपिणी महाभागा
अहल्या का उद्धार करने का आदेश दिया और राम ने उन्हें शाप मुक्त कर दिया। कहते हैं
अहियारी ही वह स्थान है जहाँ अहल्या ने पुन: अपना शरीर प्राप्त किया था और गौतम
ऋषि ने उन्हें पुन: स्वीकार किया था।
अधवारा समूह के
दूसरे अंश के रूप में माढा तथा
रातो नदियों का नाम आता है। दोनों नदियाँ नेपाल में क्रमश: 610 मीटर ऊँचाई से निकलती हैं। माढा नदी में बहुत सी
छोटी-छोटी नदियों का पानी आता है और यह सुरसण्ड से 7 किलोमीटर पूरब में भारत में प्रवेश करती है। माढा
में रघपुरा के पास हरदी,
रसलपुर के पास संघी और निहसा के पास रातो नदी
आकर मिलती है। हरदी नदी खुद बरवे और कन्टावा आदि नदियों से मिल कर बनती है। कहते
हैं कि बरवे का मूल नाम व्याघ्रवती है यद्यपि बागमती या अधवारा समूह की किसी भी
नदी को स्थानीय लोग व्याघ्रमती बताना नहीं भूलते क्योंकि यह सारी नदियाँ बाघ
(व्याघ्र) की ही तरह झपट्टा मारने के लिए मशहूर हैं। इसके बाद इन दोनों नदियों की
सम्मिलित धारा सुरसरी के नाम से दक्षिण-पूर्व दिशा में चल कर धौंस नदी में मिल
जाती है। रातो एक पहाड़ी नदी होने के बावजूद सदानीरा नदी है।
अधवारा नदी समूह
का तीसरा मुख्य अंश धौंस, थोमने, जमुनी, बिधी और दरभंगा- बागमती का है। धौंस, नेपाल में तराई के पास की पहाड़ियों से निकलती है और
इसमें बिघी,
घोघरा, हरदीनाथ, जमुने और थोमने आदि नदियाँ आकर मिलती हैं। इनमें से
जमुने नदी नेपाल में जनकपुर जिले के उत्तरी भाग से निकलती है और भारत के मधुबनी
जिले में हरलाखी से तीन किलोमीटर उत्तर-पूर्व में प्रवेश करती है। इसके किनारे
बिसौल नाम का एक गाँव पड़ता है जिसके बारे में कहा जाता है कि जब विश्वामित्र राम
और लक्ष्मण को सिद्धाश्रम से जनकपुर ले जा रहे थे तब उन्होंने इस गाँव में विश्राम
किया था। यहीं से दोनों भाई फूल लाने के लिए 'फुलहर' गए थे जहाँ सीता जी भी गिरिजा का पूजन करने के लिए
आयी थीं। राम ने सीता को पहली बार यहीं देखा था। फुलहर का मूल नाम पुष्पहर है और
यहीं राजा जनक की फुलवारी थी, ऐसा
कहा जाता है।''
घोघरा और विधी का संगम भारत-नेपाल सीमा के
थोड़ा ऊपर होता है जबकि हरदीनाथ और जमुने एक दूसरे से प्राय: दोनों देशों की सीमा पर
ही आकर मिलती हैं। धौंस के साथ माढा रातो समूह की नदियों का संगम मधुबनी जिले के
बेनीपट्टी अनुमण्डल में त्रिमुहान घाट के पास होता है जबकि बुढ़नद (अधवारा, जमुरा और शिकाओं की सम्मिलित धारा) से धौंस का संगम
करहारा घाट के पास होता है। सौलीघाट से थोड़ा उत्तर में धौंस में थोमने नदी आकर
उसके बायें किनारे पर संगम करती है। थोमने से संगम के बाद धौंस का नाम
दरभंगा-बागमती (व्याघ्रमती) हो जाता है जिसमें आगे चल कर कमला नदी की दो छाड्न
धाराएं मिलती हैं। इनमें से पहली धारा का नाम सरसों कमला या बछराजा धार है जो रथौस
में धौंस से मिलती है और दूसरी धारा का नाम छजरी कमला है जो कमलाबाड़ी के पास धौंस
के बाएं किनारे पर आ मिलती है। बछराजा नदी कमला की एक छाड्न धारा है जो जयनगर से
लगभग 20 किलोमीटर उत्तर नेपाल में कमला के दाहिने किनारे से
निकलती है। बरसात के मौसम में नदी के प्रवाह में अपने जलग्रहण क्षेत्र से आने वाले
पानी के साथ-साथ कमला नदी से छलकने वाला पानी भी शामिल हो जाता है। दरभंगा- बागमती
कमतौल और रघौली होते हुए एकमी घाट पहुँचती है।